ब्रह्मकूर्च
( हेमाद्रि ) -
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशीको स्त्रानादिके अनन्तर उपवासका संकल्प करके देवोंको तोयाक्षतादिसे और पितरोंको तिलतोयादिसे तृप्त करके कपिला गौका ' गोमूत्र ', कृष्ण गौका ' गोमय ', श्वेत गौका ' दूध ', पीली गौका ' दही ' और कर्वुर ( कबरी ) गौका घी लेकर वस्त्रसे छान करके एकत्र करे । उसमें थोड़ा कुशोदक ( डाभका पानी ) भी मिला दे और रात्रिके समय उक्त ' पञ्च गव्य ' पीये तो उससे तत्काल ही सब पाप - ताप और रोग - दोष दूर होकर अद्भुत प्रकारके बल, पौरुष और आरोग्यकी वृद्धि होती है ।