आरोग्यव्रत
( गरुडपुराण ) -
कार्तिक शुक्ल नवमी ( या किसी भी शुक्ल नवमी ) को उपवास करे । दशमीको स्त्रान करके हरिका ध्यान करे । फल, पुष्प और मधुरात्र - पानादिका भोग लगावे । साथ ही चक्र, गदा, मूसल, धनुष और खडग - इन आयुधोंका लाल पुष्पोंसे पूजन करके गुडान्नका नैवेद्य अर्पण करे । इसके अतिरिक्त अजिन ( मृगचर्म ) पर द्रोणपरिमित तिलोंका कमल बनाकर उसपर सुवर्णका अथवा अच्छे वर्णका अष्टदल स्थापित करके उसकी प्रत्येक पँखुड़ीपर पूर्वादिक्रमसे मन, श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिह्वा, घ्राण, प्राण और बुद्धि - इनका पूजन करके
' अनामयानीन्द्रियाणि प्राणश्च चिरसंस्थितः । अनाकुला च मे बुद्धिः सर्वे स्युर्निरुपद्रवाः ॥
मनसा कर्मणा वाचा मया जन्मनि जन्मनि । संचितं क्षपयत्वेनः कालात्मा भगवान् हरिः ॥'
से इनकी प्रार्थना करे तो रोगी नीरोगी और सदैव सुस्वस्थ रहता है ।