तुलसीविवाह
( विष्णुयामल ) -
पद्मपुराणमें कार्तिक शुक्ल नवमीको तुलसीविवाहका उल्लेख किया गया है; किंतु अन्य ग्रन्थोंके अनुसार प्रबोधिनीसे पुर्णिमापर्यन्तके पाँच दिन अधिक फल देते हैं । व्रतीको चाहिये कि विवाहके तीन मास पूर्व तुलसीके पेड़को सिंचन और पूजनसे पोषित करे । प्रबोधिनी या भीष्मपञ्चक अथवा ज्योतिः शास्त्रोक्त विवाहमुहूर्तमें तोरण - मण्डपादिकी रचना करके चार ब्राह्मणोंको साथ लेकर गणपति - मातृकाओंका पूजन, नान्दीश्राद्ध और पुण्याहवाचन करके मन्दिरकी साक्षात् मूर्तिके साथ सुवर्णके लक्ष्मीनारायण और पोषित तुलसीके साथ सोने और चाँदीकी तुलसीको शुभासनपर पूर्वाभिमुख विराजमान करे और सपत्नीक यजमान उत्तराभिमुख बैठकर ' तुलसी - विवाह - विधि ' के अनुसार गोधूलीय समयमें ' वर ' ( भगवान् ) का पूजन, ' कन्या ' ( तुलसी ) का दान, कुशकण्डीहवन और अग्नि - परिक्रमा आदि करके वस्त्राभूषणादि दे और यथाशक्ति ब्राह्मण - भोजन कराकर स्वयं भोजन करे ।