भीष्मपञ्चक
( पद्मपुराण ) -
यह व्रत कार्तिककी प्रबोधिनीसे प्रारम्भ होकर पूर्णिमाको पूर्ण होता हैं । इस निमित्त काम - क्रोधादिका त्याग कर ब्रह्मचर्य धारण करके क्षमा, दया और उदारतायुक्त होकर सोने या चाँदीकी लक्ष्मीनारायणकी मूर्ति बनवाकर वेदीपर स्थापित करे । ऋतुकालमें प्राप्त होनेवाले गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्यादिसे पूजन करके पाँच दिनपर्यन्त निराहार, फलाहार, एकभुक्त, मिताहार या नक्तव्रतादिमें जो बन सके, व्रत करे । प्रतिदिन पद्मपुराणोक्त कथा सुने । पूजनमें सामान्य पूजाके सिवा - पहले दिन भगवानके हदयका कमलके पुष्पोंसे, दूसरे दिन कटिप्रदेशका बिल्वपत्रोंसे, तीसरे दिन घुटनोंका केतकी ( केवड़े ) के पुष्पोंसे, चौथे दिन चरणोंका चमेलीके पुष्पोंसे और पाँचवें दिन सम्पूर्ण अङ्गका तुलसीकी मंजरियोंसे पूजन करे । नित्यप्रति
' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय '
के सौ, हजार, दस हजार या जितने बन सके जप करे और व्रतान्ममें पारणाके समय ब्राह्मणदम्पतिको भोजन करवाकर स्वयं भोजन करे । इस देशमें अधिकांश स्त्रियाँ एकादशी और द्वादशीको निराहार, त्रयोदशीको प्रभातमें द्विजदम्पतिको जिमाकर स्वयं भोजन करके ' पँचभीखण ' नहाती है ।