संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुराण|विष्णुधर्माः| अध्याय ९ विष्णुधर्माः अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ अध्याय ९८ अध्याय ९९ अध्याय १०० अध्याय १०१ अध्याय १०२ अध्याय १०३ अध्याय १०४ अध्याय १०५ विष्णुधर्माः - अध्याय ९ विष्णुधर्माः Tags : puransanskritVishnu dharmaपुराणविष्णुधर्माःसंस्कृत विष्णुधर्माः - अध्याय ९ Translation - भाषांतर अथ नवमोऽध्यायः ।पुलस्त्य उवाच ।यदा च शुक्लद्वादश्यां नक्षत्रं श्रवणं भवेत् ।तदा सा तु महापुण्या द्वादशी विजया स्मृता १तस्यां स्नातः सर्वतीर्थैः स्नातो भवति मानवः ।सम्पूज्य वर्षपूजायाः सकलं फलमश्नुते २एकं जप्त्वा सहस्रस्य जप्तस्याप्नोति यत्फलम् ।दानं सहस्रगुणितं तथा वै विप्र भोजनम् ३यत्क्षेममपि वै तस्यां सहस्रं श्रावणे तु तत् ।अन्यस्यामेव तिथ्यां शुभायां श्रावणं यदा ।होमस्तथोपवासश्च सहस्राख्यफलप्रदः ३इति विष्णुधर्मेषु विजयद्वादशी । N/A References : N/A Last Updated : February 07, 2024 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP