देखो री छबि नन्दसुवनकी ।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, मुक्त माल गर मनु किरननकी
देखो र छबि० ॥
कर कंकन कंचनके शोभित, उर भ्रगुलता नाथ त्रिभुवनकी
देखोर री छबि० ॥
तन पहिरे केसरिया बागो अजब लपेटन पित बसनकी
देखो री छबि० ॥
रूपकुँवरि धुनि सुनि नूपुरकी, छबि निरखति श्यामपगनकी
देखो री छबि० ॥