भज मन राधा गोपाल छोड़ो सब झगरौ ॥
सुत पति लखि तात मात सँगमें न कोऊ जात
झूठौ संसार जाल मायाको बगरौ ।
मिथ्या धन धाम ग्राम झूठौ है जग तमाम
नाहक ममतामें फँसो चरनणनमैं लगरौ ॥
यमपुर जब मार परे कोउ न सहाय करे
तन मन धन गेह नेह भूल जात सगरौ ।
चोला यह चामको निकाम रामनाम हीन
हंसा उड़ि जात जबै यमके संग झगरौ ॥
गर्भमें कबूल करी भक्ति हेतु देह धरी
भूल गये कौल फिरत भटकत जग सगरौ ।
दीनबंधु हे मुरारि ! सुनिये मेरी पुकार
रूपकुँवरि कृष्ण हेतु अर्पण तन हमरौ ॥