प्रभुजी ! यह मन मूढ़ न माने ॥
काम क्रोध मद लोभ जेवरी ताहि बाँधि कर ताने ।
सब बिधि नाथ याहि समुझायौ नेक न रहत ठिकाने ॥
अधम निलज्ज लाज नहिं याको जो चाहे सोइ ठाने ।
सत्य असत्य धर्म अरु अधरम नेक न याहि लजाने ।
दीन जानि प्रभु रूपकुँवरिकौ सब बिधि नाथ निभाने ॥