जागहु ब्रजराज लाल मोर मुकुटवारे ।
पक्षी ध्वनि करहिं शोर अरुण वरुण भानु भोर
नवल कमल फूल रहे भौंरा गुनजारे ॥
भक्तनके सुने बयन जागे करुणाके अयन
पूजी मन कामधेनु पृथ्वी पगु धारे ।
करके सुस्नान ध्यान पूजन पूरण विधान
ब्रिप्रनको दियौ दान नंदके दुलारे ॥
ग्वाल बाल टेर टेर दुहरी लीन्हीं नवेर
बछरा दीन्हें उबेर दूध दुहत सारे ।
करके भोजन गैयन सँग भये ग्वाल
बंसीबट तीर गये यमुना किनारे ।
मुरली कर लकुत हाथ बिहरत गोपिनके साथ
नटवर सब बेष किये यशुमतिके पियारे ।
हौं तो मैं शरण नाथ मिनवति धरि चरन माथ
रूपकुँवरि दरस हेतु शरण है तिहारे ॥