तिलकव्रत ( भविष्योत्तर ) -
यह व्रत चैत्र शुक्ल प्रतिपदाको किया जाता है । इसके निमित्त नदी या तालाबके तटपर जाकर अथवा घरपर ही पटवासकके चूर्णसे संवत्सरकी मूर्ति लिखकर उसका ' संवत्सराय नमः ', ' चैत्राय नमः' , ' वसन्ताय नमः ' आदि नाम - मन्त्नोंसे पूजन करके विद्वान् ब्राह्मणका अर्चन करे । उस समय ब्राह्मण ' संवत्सरोऽसि० 'मन्त्न पढ़े । तब ' भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु मे । संवत्सरोपसगों मे विलयं यात्वशेषतः ॥' से प्रार्थना करे और दक्षिणा दे । इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल प्रतिपदाको वर्षभर करे तो भूत - प्रेत - पिशाचादिकी बाधाएँ शान्त हो जाती हैं ।
संवत्सरोऽसि परिवत्सरोऽसीडावत्सरेऽसि अनुवत्सरोऽसि वत्सरोऽसि । ( यजुर्वेद )