गौरीतृतीया ( व्रतोत्सवसंग्रह ) -
यह भी इसी दिन ( चैत्र शुक्ल तृतीयाको ) किया जाता है । सौभाग्यवती स्त्रियाँ उस दिन प्रातः- स्त्रान करके उत्तम रंगीन वस्त्र ( लाल धोती आदि ) धारण करके शुद्ध स्थानमें २४ अंगुलकी सम - चौरस वेदी बनायें और उसपर केसर, चन्दन और कपूरसे मण्डल बनाकर उसमें सोने या चाँचीकी मूर्ति स्थापन करके अनेक प्रकारके फल, पुष्प, दूर्वा और गन्धादिसे पूजन करे । उसी जगह गौरी, उमा, लतिका, सुभगा, भगमालिनी, मनोन्मना, भवानी, कामदा, भोगवर्द्धिनी और अम्बिका - इनको भी गन्ध - पुष्पादिसे चर्चित और सुशोभित करे और भोजनमें केवल एक बार दूध पियें तो पति - पुत्रादिका अखण्ड सुख प्राप्त होता है ।