सूर्यव्रत ( विष्णुधर्मोत्तर ) -
यह भी चैत्र शुक्ल सप्तमीको हो होता है । इसके लिये एकान्तके मकानको लीपकर या धोकर स्वच्छ करे और उसके मध्यमें वेदी बनाकर उसपर अष्टदल कमल लिखे और कमलके प्रत्येक दलमें निम्रलिखित मूर्ति स्थापित करे । यथा - पूर्वके दलपर दो ऋतुकारक ' गन्धर्व ' , आग्नेय पत्रपर दो ऋतुकारक ' गन्धर्व' , दक्षिण दलपर दो ' अप्सराएँ ', नै दलपर दो ' राक्षस ', पश्चिमके दलपर ऋतुकारक दो ' महानाग ', वायव्यके दलपर दो ' यातुधान ', उत्तरके दलपर दो ' ऋषि ' और ईशानके दलपर एक ' ग्रह ' स्थापन करके उन सबका यथाक्रम पृथक् - पृथक् गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्यसे पञ्चोपचार पूजन करके सूर्यके निमित्त घीकी १०८ आहुतियाँ दे और अन्य सबके निमित्त आठ - आठ आहुतियाँ दे तथा प्रत्येकके निमित्त एक - एक ब्राह्मणको भोजन कराये । इस प्रकार शुक्ल पक्षकी प्रत्येक सप्तमीको एक वर्षतक करे तो उसको सूर्यलोककी प्राप्ति होती है ।