विद्याव्रत ( विष्णुधमोंत्तर ) -
चैत्र शुक्ल प्रतिपदाको एक वेदीपर अक्षतोंका अष्टतल बनाकर उसके मध्यमें ब्रह्मा, पूर्वमें ऋक, दक्षिणामें यजु; पश्चिममें साम, उत्तरमें अथर्व, अग्निकोणमें षट्शास्त्र, नै धर्मशास्त्र, वायव्यमें पुराण और ईशानमें न्यायशास्त्रको स्थापन करे तथा उन सबका नाम - मन्त्नसे आवाहनादि पूजन करके व्रत रखे । इस प्रकार प्रत्येक शुक्ल प्रतिपदाको १२ महिने करके गोदान करे और फिर उसी प्रकार १२ वर्षातक यथावत करता रहे तो वह महाविद्वान बन सकता है ।