ईश्वर - गौरी ( व्रतोत्सव ) -
इसी दिन ( चैत्र शुक्ल तृतीयाको ) काष्ठादिकी पूर्वनिर्मित शिव - गौरीकी मूर्तियोंको स्त्रान कराके उत्तम प्रकारके वस्त्र और आभूषणादिसे भूषितकर पूजन करे और डोल, पालने व सिंहासनादिमें उनको सावधानीके साथ विराजमान करके सायङ्कालके समय विविध प्रकारके गाजे - बाजे, लवाजमे, सौभाग्यवती स्त्रियों और सत्पुरुषोंके समारोहके साथ उनको नगरसे बाहर किसी पुष्पोद्यान या सरोवरके तटपर स्थापित करे और वहाँ कुछ कालतक क्रीड़ा - कौतुकादिकी कला प्रदर्शन करानेके पीछे उनको उसी प्रकार वापस लाकर यथास्थान स्थापित कर दे । इस प्रकार प्रतिवर्ष करते रहनेसे नगर, ग्राम और उपबस्ती आदिमें सर्वत्र ही उद्योग, उत्साह, आरोग्यता और सर्वसौख्य बढ़ते हैं ।