श्रीव्रत ( विष्णुधर्मोत्तर ) -
यह चैत्र शुक्ल पञ्चमीको किया जाता है । इसलिये तृतीयाको अभ्यङ्ग - स्त्रान करके शुद्ध वस्त्र धारण करे । माला आदि भी सफेद ले और व्रतमें संलग्न रहे । घी, दही और भातका भोजन करे । चतुर्थीको स्त्रान करके व्रत रख और पञ्चमीको प्रातःस्त्रानादिके पश्चात् लक्ष्मीका पूजन करे । पूजनमें धान्य, हलदी, अदरख, गत्रे, गुड़ और लवण आदि अर्पण करके कमलके पुष्पोंका लक्ष्मीसूक्तसे हवन करे । यदि कमल करे और पद्मिनी ( कमलोंवाली तलाई ) में स्त्रान करके सुवर्णका दान करे तो ' श्री ' ( लक्ष्मी ) की प्राप्ति होती है ।