परमायुका दशांश है वही संध्यादशाके वर्ष जानना । विशेषता यह है कि, प्रथम सन्ध्यादशामें जन्मलग्नके स्वामीकी दशा होती है तिसके बाद क्रमसे और ग्रहोंकी दशा होती है । जैसे मेषलग्न है तौ मेषके स्वामी मंगलकी, प्रथम १२ वर्षकी दशा जानना । तिसके बाद बुधकी, फिर गुरुकी, शुक्रकी, शनिकी, राहुकी, केतुकी, फिर सूर्यकी, फिर चन्द्रमाकी बारह वर्ष प्रत्येक दशाका प्रमाण जानना । विंशोत्तरीदशामें चन्द्रमाके दशाके वर्षसमान अर्थात् दशवर्ष सन्ध्यादशाका प्रमाण कहा है ॥१॥२॥