राहु अंतर्दशान्तर्गत राहुकी उपदशामें बंधन, व्याधि रोग पीडा दारुण हो, स्थानहानि और कुत्सित अन्नका भोजन होता है । राहु अंतर्दशान्तर्गत बृहस्पतिकी उपदशामें ज्ञान, धर्म और अर्थका नाश, कलह, व्यसन और कटुक मीठा भोजन लाभ होता है । राहुदशान्तर्गत शनिकी उपदशामें लंघन घरका भंग, हाथ पैर और नेत्रोंमें पीडा, बंधन इत्यादि अशुभफल होता है । राहु अंतर्दशान्तर्गत बुधकी उपदशामें धन वस्त्रादिकी हानि हो पदबुद्धिका नाश फलशाकादिका भोजन प्राप्त होता है ॥१-४॥
राहु अन्तर्दशान्तर्गत केतुकी उपदशामें अर्थका नाश, विदेशका गमन, मृत्यु चौर तथा राजासे भय बंधन और विग्रह होता है । राहु अंतर्दशान्तर्गत शुक्रकी उपदशामें योगिनी भूत प्रेत तथा मातृग्रहोंकरके स्त्रीका और कुलका नाश, पीडा और कुत्सित भोजन प्राप्त होता है । राहुकी अंतर्दशान्तर्गत सूर्यकी उपदशामें मित्र पुत्रको महान् पीडा, ज्वररोग हो, अन्नकी हानि हो । राहु अंतर्दशान्तर्गत चन्द्रमाकी उपदशामें चित्तभ्रम, मानभंग, उद्वेग, कलह, भय और हविष्यान्न स्नेहका भोजन प्राप्त होता है । राहु अन्तर्दशान्तर्गत मंगलकी उपदशामें रोग, मृत्यु, प्रमाद, रक्तपित्त विकार, भगंदररोग, कुत्सित भोजन और मानहानि होती है ॥५-९॥