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अध्याय ५ - योगिनीदशास्वामी

मानसागरी - अध्याय ५ - योगिनीदशास्वामी

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


चन्द्रमा, सूर्य, बृहस्पति, मंगल, बुध, शनैश्चर, शुक्र और राहु ये क्रमसे मंगलादि दशाओंके स्वामी जानना और शुभग्रहोंसे शुभ तथा पापग्रहोंसे अशुभ फल कहना चाहिये । जो ग्रह अस्तको प्राप्त हो तथा शत्रुके घरमें स्थित हो अथवा नीचराशिमें हो इसी प्रकार वर्षेशसे शत्रुस्थानमें प्राप्त हो तौ उसकी दशाका फल मध्यम कहा है तथा जो ग्रह उचमें अपने ही राशिमें हो मूलत्रिकोणमें अथवा मित्रके स्थानमें हो उसकी दशा सौख्यदायक जानना ॥१॥२॥

पिंगलादशाका स्वामी सूर्य, मंगलाका चन्द्रमा, भ्रामरीका मंगल, धन्याका बुध, भद्रिकाका बृहस्पति, सिद्धाका शुक्र, उल्काका शनैश्चर और संकटादशाका राहु स्वामी है । इनके अंतमें केतुकी दशा होती है ॥३-५॥

इति श्रीरुद्रयामले योगिनीदशाक्रमः समाप्तः ॥

वर्तमानशाकेमें जन्मकालिक शाकेको हीन करै अर्थात् घटाय देवै जो अंक शेष रहै वही गतवर्ष जानना; उसको तीन स्थानोंमें स्थापित करै पहिले स्थानमें सवाया; दूसरे स्थानमें आधा, तीसरे स्थानमें डेवढे करे । फिर उनमें जन्मवार आदि ( वार, घटी, पल ) संयुक्त करै तौ वर्षप्रवेशवेला ( समय इष्टकाल ) स्फुट होता है । एक, पन्द्रह, इकतीस, तीस ( १।१५।३१।३० ) वारादि पिछिले वर्षके ध्रुवामें युक्त करदे तौ अगले वर्षका ध्रुवा होता है । जिसदिन वर्षप्रवेश समयका सूर्य जन्म समयके सूर्याशोंसे बराबर होता है उसी दिन वर्षप्रवेश होता है । इस प्रकार वर्षप्रवेशका इष्ट समय जानकर पूर्व द्वितीय अध्यायमें रीतियोंसे लग्नसहित द्वादशभाव तथा ग्रहोंको स्पष्ट करलेवै तो वर्ष बनजाता है ॥६॥

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Last Updated : January 22, 2014

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