राहुकी दशामें धर्मकी हानि, कामरतिका विनाश, स्त्री पुत्र मित्रादिकी पीडा, विदेशगमन, मतिभ्रम कलह और कुष्ठरोगका भय होता है ॥१॥
राहुके अन्तर्गत राहुदशामें भय रोग तथा पापसे पीडित, स्त्रीपुत्रमित्रको कष्ट, अपने जनोंकरके कलह होता है ॥२॥
राहुके अन्तर्गत शुक्रकी दशामें ब्राह्मण और राजासे मित्रता, स्त्रीके संसर्गसे धनका संचय और लडाईमें विजय होता है ॥३॥
राहुके अन्तर्गत सूर्यकी दशामें शत्रु रोगका धोरभय, द्रव्यका नाश, महाभय अग्नि तथा चौरभय होता है ॥४॥
राहुके अन्तर्गत चन्द्रमाकी दशामें शत्रु, व्याधि, महाभय, बन्धु तथा धनका नाश, कलह, बन्धुविद्वेष होता है ॥५॥
राहुके अन्तर्गत मंगलकी दशामें विष, शस्त्र, अग्नि, चौरकरके वारंवार महाभय तथा धन स्त्री और बन्धुका नाश होता है ॥६॥
राहुके अन्तर्गत बुधकी दशामें बन्धु मित्र कलत्रादि धन तथा भृत्य सुखकरके युक्त और कहीं भी भय नहीं होता है ॥७॥
राहुके अंतर्गत शनिकी दशामें वात-पित्तविकारसे उत्पन्न रोग, बांधवोंके साथ कलह, देशका त्याग, धनका नाश होता है ॥८॥
राहुके अंतर्गत बृहस्पतिकी दशामें रोगरहित अपने जनोंकरके संयुक्त, देवता ब्राह्मणकी भक्तिमें रत, धर्म और तीर्थमें रत होता है ॥९॥