मंगलकी संध्यादशामें बडे प्रतापको प्राप्त, चौर्य, हवि, तस्कर, पापकर्म, जनोंका दंडदायक, तेजवान्, साहसी, राजाओं तथा शस्त्र, विष, अग्निकर्मका नेता, श्रेष्ठ धर्म करके संयुक्त, कांतादिकार्यमें प्रवीण, निरंतर अर्थका लाभ, हेम अंगना ताम्र हिरण्यके लाभवाला होता है । यदि भौम नीच शत्रुराशिमें स्थित हो तो कटु कषायरसका भोजन प्राप्त, कुबुद्धि, कुजनोंका साथ, अपने भाई बंधु और अपने जनों, अर्थका नाश, कष्ट, रुधिर और पित्तविकारसे भय होता है ॥१-३॥