भरद्वाजजी बोले - सूतजी ! आपने ' सर्ग ' और ' अनुसर्ग ' का वर्णन किया, विचित्र कथाएँ सुनायीं; अब मुझसे राजाओंके वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरितका वर्णन करें ॥१॥
सूतजी बोले - पुराणोंमें राजाओंके वंशका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है; यहाँ मैं राजाओंके वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरितका संक्षेपसे वर्णन करुँगा । महामते विप्रवर ! इसे आप तथा अन्य मुनि भी, जो कथाश्रवणके लिये यहाँ आकर ठहरे हुए हैं, सुनें ॥२ - ३॥
सबसे पहले ब्रह्माजी प्रकट हुए; उनसे मरीचि, मरीचिसे कश्यप, कश्यपसे सूर्य, सूर्यसे मनु, मनुसे इक्ष्वाकु, इक्ष्वाकुसे विकुक्षि, विकुक्षिसे द्योत, द्योतसे वेन, वेनसे पृथु और पृथुसे पृथाश्वकी उत्पत्ति हुई । पृथाश्वसे असंख्याताश्व, असंख्याताश्वसे मान्धाता, मान्धातासे पुरुकुत्स, पुरुकुत्ससे दृषद, दृषदसे अभिशम्भु, अभीशाम्भुसे दारुण, दारुणसे सगर, सगरसे हर्यश्च, हर्यश्वसे हारीत, हारीतसे रोहिताश्व, रोहिताश्वसे अंशुमान् तथा अंशुमानसे भगीरथ उत्पन्न हुए । भगीरथसे सौदास, सौदाससे शत्रुंदम्, शत्रुंदमसे अनरण्य, अनरण्यसे दीर्घबाहु, दीर्घबाहुसे अज, अजसे दशरथ, दशरथसे श्रीराम, श्रीरामसे लव, लवसे पद्म, पद्मसे अनुपूर्ण और अनुपर्णसे वस्त्रपाणिका जन्म हुआ । वस्त्रपाणिसे शुद्धोदन और शुद्धोदनसे बुध ( बुद्ध ) - की उत्पत्ति हुई । बुधसे सूर्यवंश समाप्त हो जाता है ॥४ - १५॥
सूर्यवंशमें उत्पन्न हुए जो क्षत्रिय हैं, उनमेंसे मुख्य - मुख्य लोगोंका यहाँ वर्णन किया गया है, जिन्होंने पूर्वकालमें इस पृथ्वीका धर्मपूर्वक पालन किया है । मुने ! यह मैने सूर्यवंशका वर्णन किया है, जिसमें प्राचीन कालमें अनेकानेक नरेश हो गये हैं । अब मेरे द्वारा बतलाये जानेवाले चन्द्रवंशीय परम उत्तम राजाओंका वर्णन आपलोग सुनें ॥१६ - १७॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' सूर्यवंशका वर्णन ' नामक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२१॥