मार्कण्डेयजी बोले - राजन् ! इसके बाद मैं तुमसे भगवान् विष्णुके ' कल्कि ' नामक पावन अवतारका वर्णन करता हूँ, जो समस्त पापोंको नष्ट करनेवाला हैं; तुम सावधान होकर सुनो । राजेन्द्र ! जब कलिकालद्वारा पृथ्वीपर धर्मका नाश हो जायगा, पाप बढ़ जायगा और सभी लोग नाना प्रकारके रोगोंसे पीड़ित होने लगेंगे, तब देवतालोग क्षीरसागरके तटपर जाकर वहाँ भगवान् विष्णुकी स्तुति करते हुए उनसे प्रार्थना करेंगे । तदन्तर भगवान् ' साम्भल ' नामक महान् ग्राममें, जो बहुसंख्यक मनुष्योमसे परिपूर्ण होगा, विष्णुयशाके पुत्ररुपसे अवतार ले, ' कल्कि ' नामसे विख्यात राजा होंगे । फिर वे घोड़ेपर चढ़कर, हाथमें तलवार ले, म्लेच्छोंका नाश करेंगे । इस प्रकार भगवान् विष्णुके अंशभूत ' कल्कि ' भूमण्डलका ध्वंस करनेवाले समस्त म्लेच्छोंका संहार कर, ' बहुकाञ्चन ' नामक यज्ञ करके, धर्मकी स्थापना कर स्वर्गारुढ हो जायँगे । राजेन्द्र ! पापोंका नाश करनेवाले भगवान् विष्णुके इन दस अवतारोंका मैंने वर्णन किया । जो भगवद्भक्त पुरुष इन अवतार - चरित्रोंका नित्य श्रवण करता है, वह भगवान् विष्णुको प्राप्त कर लेता है ॥१ - ६॥
राजा बोले - विप्रेन्द्र ! आपके प्रसादसे मैंने भगवान् नारायणके अवतारोंका, जो श्रोताओंके पापोंका नाश करनेवाले हैं, श्रवण कर लिया । मुनिसत्तम ! अब आप कलिका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये; क्योंकि आप सर्वज्ञ महात्माओंमें सबसे श्रेष्ठ हैं । कृपया बताइये कि कलियुगमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कैसे आहार और आचरणवाले होंगे ॥७ - ८ १/२॥
सूतजी बोले - भरद्वाजसहित आप सभी ऋषिगण सुनें । राजाके यों प्रेरणा करनेपर मार्कण्डेयजीने कलिधर्मका इस प्रकार निरुपण किया । भगवान् कृष्णचन्द्रके परमधाम पधार जानेपर उनके अन्तर्धानके फलस्वरुप समस्त पापोंका साधक महाघोर कलियुग प्रकट होगा; उस समय सभी धर्म नष्ट हो जायँगे । घोर कलियुग प्राप्त होनेपर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी लोग धर्म, ब्राह्मण तथा देवताओंसे विमुख हो जायँगे । सभी किसी - न - किसी व्याजसे ( स्वार्थसिद्धिके लिये ) ही धर्ममें प्रवृत्त होंगे; दम्भ - ढोंगका आचरण करेंगे । एक - दूसरेमें दोष ढूँढ़नेवाले और व्यर्थ अभिमानसे दूषित विचारवाले होंगे । पाण्डित्यका गर्व रखनेवाले सभी मनुष्य सत्यका अपलाप करेंगे और सब लोग यही कहेंगे कि ' मैं ही सबसे बड़ा हूँ ।' कलियुगमें सभी अधर्मलोलुप तथा दूसरोंकी निन्दा करनेवाले होंगे, अतः सबकी आयु बहुत थोड़ी होगी । द्विजगण ! मनुष्योंकी आयु अल्प होनेसे ब्राह्मणलोग अधिक विद्याध्ययन नहीं कर सकेंगे । विद्याध्ययनसे शून्य होनेके कारण उनके द्वारा पुनः अधर्मकी ही प्रवृत्ति होगी ॥९ - १५॥
ब्राह्मण आदि वणोंमें परस्पर संकरता आ जायगी । वे कामी, क्रोधी, मूर्ख और व्यर्थ संतापसे पीड़ित होंगे । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आपसमें वैर बाँधकर एक - दूसरेका वध कर देनेकी इच्छावालोए होंगे । वे सभी अपने - अपने धर्मसे विमुख होंगे । तप एवं सत्यभाषणादिसे रहित होकर शूद्रके समान हो जायँगे । उत्तम वर्णवाले नीचे गिरेंगे और नीच वर्णवाले उत्तम बनेंगे । राजालोग लोभी तथा केवल धनोपार्जनमें ही प्रवृत्त रहेंगे । वे धर्मका चोला पहनकर उसीकी ओटमें धर्मका विध्वंस करनेवाले होंगे । समस्त अधर्मोंस्से युक्त घोर कलियुगके आ जानेपर जो - जो घोड़े, रथ और हाथीसे सम्पन्न होंगे, वे - वे ही राजा कहे जायँगे । पुत्र अपने पितासे काम करायेंगे और बहुएँ साससे काम लेंगी । स्त्रियाँ पति और पुत्रको धोखा देकर अन्य पुरुषोंके पास जाया करेंगी ॥१६ - २१॥
पुरुषोंकी संख्या कम और स्त्रियोंकी अधिक होगी । कुत्तोंकी अधिकता होगी और गौओंका ह्वास । सबके मनमें धनका ही महत्त्व रहेगा । सत्पुरुषोंके सदाचारका सम्मान नहीं होगा । मेघ कहीं वर्षा करेंगे, कहीं नहीं करेंगे । समस्त मार्ग चोरोंसे धिरे रहेंगे । गुरुजनोंकी सेवामें रहे बिना ही सभी लोग सब कुछ जाननेका अभिमान करेंगे । कोई भी ऐसा न होगा जो अपनेको कवि न मानता हो । शराब पीनेवाले लोग ब्रह्मज्ञानका उपदेश करेंगे । ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य शूद्रोंके सेवक होंगे । घोर कलिकाल आनेपर पुत्र पितासे, शिष्य गुरुसे और स्त्रियाँ अपने पतियोंसे द्वेष करेंगी । सबका चित्त लोभसे आक्रान्त होगा, अतएव सभी लोग दुष्कर्मोंमें प्रवृत्त होंगे । ब्राह्मण सदा दूसरोंके ही अन्नके लोभी होंगे । सभी परस्त्रीसेवी और परधनका अपहरण करनेवाले होंगे । घोर कलियुग आ जानेपर दूसरोंमें दोषदृष्टि रखनेवाले सभी लोग धर्मपरायण पुरुषोंका उपहास करेंगे । ब्राह्मणलोग वेदकी निन्दामें प्रवृत्त होकर व्रतोंका आचरण नहीं करेगे । तर्कवादसे कुत्सित विचार हो जानेके कारण वे न तो यज्ञ करेंगे और न हवनमें ही प्रवृत्त होंगे । द्विजलोग दम्भके लिये ही पितृयज्ञ आदि क्रियाएँ करेंगे । मनुष्य प्रायः सत्पात्रको दान नहीं देंगे । लोग दूध आदिके लिये ही गौओंमें प्रेम रखेंगे । राजाके सिपाही धनके लिये ब्राह्मणोंको ही बाँधेंगे । द्विजलोग दान, यज्ञ और जप आदिका फल प्रायः बेचा करेंगे । ब्राह्मणलोग चण्डाल आदि अस्पृश्य जातियोंसे भी दान लेंगे । कलियुगके प्रथम चरणमें भी लोग भगवानकी निन्दा करनेवाले हो जायँगे ॥२२ - ३१॥
कलियुगके अन्तिम समयमें तो कोई भगवानके नामका स्मरणतक न करेगा । कलियुगके द्विज शूद्रोंकी स्त्रियोंके साथ सहवस करेंगे और विधवा - संगमके लिये लालायित रहेंगे तथा वे शूद्रोंका भी अन्न भक्षण करनेवाले होंगे । उस समय अधम शूद्र संन्यासका चिह्न धारणकर न तो द्विजातियोंकी सेवा करेंगे और न उनकी स्वधर्ममें ही प्रवृत्ति होगी । वे अपने खाक - भभूत लपेटे फिरेंगे । विप्रवरो ! कूटबुद्धिमें निपुण शूद्रगण धर्मका उपदेश करेंगे । ऊपर कहे अनुसार तथा और भी तरहके बहुत - से पाखण्डी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कलियुगमें उत्पन्न होंगे । कलियुग आनेपर विप्रगण वेदके स्वाध्याय विमुख हो गाने - बजानेमें मन लगायेंगे और शूद्रों मार्गका अनुसरण करेंगे । कलियुगमें लोग थोड़े धनवाद झूठा वेष धारण करनेवाले और मिथ्याभिमानसे दूषित होंगे । वे दूसरोंका धन हरण कर लेंगे, पर अपनी किसीको नहीं देंगे । उस समय अच्छे पथपर चलनेवाले ब्राह्मण सदा दान लेते फिरेंगे । सभी लोग आत्मप्रशंसक और दूसरोंकी निन्दा करनेवाली होंगे । देवता, वेद और ब्राह्मणोंपरसे सबका विश्वास उठ जायगा ॥३२ - ३९॥
सब लोग वेदविरुद्ध वचन बोलनेवाले और ब्राह्मणोंके द्वेषी होंगे । सभी स्वधर्मके त्यागने वाले, कृतघ्न और अपने वर्णधर्मके विरुद्ध वृत्तिसे आजीविका चलानेवाले होंगे । कलियुगमें लोग भिखमंगे, चुगलखोर, दूसरोंकी निन्दा करनेवाले और अपनी ही प्रशंसामें तत्पर होंगे । मनुष्य सदा दूसरोंके धनका अपहरण करनेके उपायको ही सोचते रहेंगे । यदि उन्हें दूसरोंके घरमें भोजन करनेका अवसर मिल जाय तो वे बड़े ही आनन्दित होंगे और प्रायः उसी दिन वे दूसरोंको दिखानेके लिये देवताकी पूजामें प्रवृत्त होंगे । दूसरोंकी निन्दामें तत्पर रहनेवाले वे ब्राह्मण वहाँ ही सबके साथ एक आसनपर बैठकर भोजन करेंगे ॥४० - ४३॥
उस समय ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - सभी जातियोंके लोग अत्यन्त कामी होंगे और एक - दूसरेसे सम्पर्क स्थापित करके वर्ण - संकर हो जायँगे । वर्ण - संकरताकी दशामें गुरु - शिष्य, पिता - पुत्र और पति - पत्नीका विचार नहीं रहेगा । नरकभोगी ब्राह्मणादि वर्ण प्रायः शूद्रवृत्तिसे ही जीविका चलायेंगे और नरकभोगी होंगे । लोगोंको प्रायः सदा अनावृष्टिका भय बन रहेगा और वे सदा आकाशकी ओर दृष्टि लगाये वृष्टिकी ही प्रतीक्षा करते रहगें । उस समयके सभी लोग सदा भूखकी पीड़ासे कातर रहेंगे । संन्यासी लोग अन्न - प्राप्तिके उ द्देश्यसे ही लोगोंको शिष्य बनाते फिरेंगे । स्तेरियाँ दोनो उद्देश्यसे ही लोगोंको शिष्य बनात फिरेंगे । स्त्रियाँ दोनों ही हाथोसे सिर खुजलाती हुई पने पति तथा गुरुजनोंकी हितभरी आज्ञाओंका तिरस्कार करेंगी । द्विजातिलोग ज्यों - ज्यों यज्ञ और व्हवन आदि कर्म छोड़ते जायँगे, त्यों - ही - त्यों बुद्धिमानोंको कलियुगकी वृद्धिका अनुमान करना चाहिये । उस समय सम्पूर्ण धर्मोंके नष्ट हो जानेसे यह सारा जगत श्रीहीन हो जायगा ॥४४ - ४९ १/२॥
सूतजी कहते हैं - विप्रवरो ! इस प्रकार मैंने आपलोगोंसे कलियुगके स्वरुपका वर्णन किया । द्विजगण ! जो लोग भगवानके भजनमें तत्पर रहेंगे, उन्हींको कलियुग बाधा नहीं दे सकता । सत्ययुगमें तपस्या प्रधान है और त्रेतामें ध्यान । द्वापरमें यज्ञको महान् बताया गया है और कलियुगमें एकमात्र दानको । सत्ययुगमें दस वर्षोतक तप आदिके लिये प्रयत्न करनेसे जो फल मिलता है, वही त्रेतायुगमें एक ही वर्षके प्रयत्नसे सिद्ध होता है, द्वापरमें एक ही मासकी साधनासे सुलभ होता है और कलियुगमें केवल एक दिन - रात यत्न करनेसे प्राप्त हो जाता है । सत्ययुगमें ध्यान, त्रेतामें यज्ञोंद्वारा यजन और द्वापरमें पूजन करनेसे, जो फल मिलता है, उसे ही कलियुगमें केवल भगवानका कीर्तन करनेसे मनुष्य प्राप्त कर लेता है । घोर कलियुग प्राप्त होनेपर समस्त जगतके आधारभूत परमार्थस्वरुप भगवान् विष्णुका ध्यान करनेवाले मनुष्यको कलिसे बाधा नहीं पहुँचती । अहो ! जिन्होंने एक बार भी भगवान् विष्णुका पूजन किया है, वे बड़े सौभाग्यशाली हैं ॥५० - ५५॥
सम्पूर्ण कर्मोंका बहिष्कार करनेवाले कलियुगके प्राप्त होनेपर किये जानेवाले वेदोक्त कर्मोंमे न्यूनता या अधिकताका दोष नहीं होता । उसमें भगवानका स्मरण ही पूर्ण फलदायक होता है । जो लोग हरे, केशव, गोविन्द, वासुदेव, जगन्मय, जनार्दन, जगद्धाम, पीताम्बरधर, अच्युत इत्यादि नामोंका उच्चारण करते रहते हैं, उन्हें कलियुग कभी बाधा नहीं पहुँचाता । अहो ! सबको भय देनेवाले इस कलिकालमें जो लोग भगवान् विष्णुकी आराधनामें लगे रहते हैं, अथवा जो उनके आराधकोंका संग ही करते हैं, वे महात्माजन बड़े ही भाग्यशाली हैं । जो हरिनामका जप करते हैं, हरिकीर्तनमें लगे रहते हैं और सदा हरिकी पूजा ही किया करते हैं, वे मनुष्य कृतकृत्य हो गये हैं - इसमें संदेह नहीं है । इस प्रकार यह कलिका वृतान्त मैंने तुमसे कहा । कलियुगमें भगवान् विष्णुका नामकीर्तन समस्त दुःखोंको दूर करनेवाला और सम्पूर्ण पुण्यफलोंको देनेवाला है ॥५६ - ६१॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' कलियुगके लक्षणोंका वर्णन ' नामक चौवनवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥५४॥