श्रीमार्कण्डेयजी कहते हैं - राजन् ! मैंने तुम्हें वर्णों और आश्रमोंका स्वरुप बताया । राजेन्द्र ! अब कहो, तुम्हारे मनमें क्या सुननेकी इच्छा है ॥१॥
सहस्त्रानीक बोले - विप्रेन्द्र ! आपने बताया कि प्रतिदिन स्नान करके अपने घरमें भगवान् अच्युतका पूजन करना चाहिये । अतः वह पूजन किस प्रकार होना चाहिये ? महामुने ! जिन मन्त्रोंद्वारा और जिन आधारोंमें भगवान् विष्णुकी पूजा होती है, वे आधार और वे मन्त्र आप मुझे बताइये ॥२ - ३॥
श्रीमार्कण्डेयजीने कहा - अच्छा, मैं अमिततेजस्वी भगवान् विष्णुके पूजनकी विधि बता रहा हूँ, जिसके अनुसार पूजन करके सभी मुनिगण परम निर्वाण ( मोक्ष ) पदको प्राप्त हुए हैं । अग्निमें हवन करनेवालेके लिये भगवानका वास अग्निमें है । ज्ञानियों और योगियोंके लिये अपने - अपने हदयमें ही भगवानकी स्थिति है तथा जो थोड़ी बुद्धिवाले हैं, उनके लिये प्रतिमामें भगवानका निवास है । इसलिये अग्नि, सूर्य, हदय, स्थण्डिल ( वेदी ) और प्रतिमा - इन सभी आधारोंमें भगवानका विधिपूर्वक पूजन मुनियोंद्वारा बताया गया है । भगवान् सर्वमय हैं, अतः स्थण्डिल और प्रतिमाओंमें भी भगवत्पूजन उत्तम है ॥४ - ६ १/२॥
अब पूजनका मन्त्र बताते हैं । शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायीमें जो पुरुषसूक्त है, उसका उच्चारण करते हुए भगवानका पूजन करना चाहिये । पुरुषसूक्तका अनुष्टुप छन्द है, जगतके कारणभूत परम पुरुष भगवान् विष्णु देवता हैं, नारायण ऋषि हैं और भगवत्पूजनमें उसका विनियोग है । जो पुरुषसूक्तसे भगवानको फूल और जल अर्पण करता है, उसके द्वरा सम्पूर्ण चराचर जगत् पूजित हो जाता है । पुरुषसूक्तकी पहली ऋचासे भगवान् पुरुषोत्तमका आवाहन करना चाहिये । दूसरी ऋचासे आसन और तीसरीसे पाद्य अर्पण करे । चौथी ऋचासे अर्घ्य और पाँचवींसे आचमनीय निवेदित करे । छठी ऋचासे स्नान कराये और सातवींसे वस्त्र अर्पण करे । आठवींसे यज्ञोपवीत और नवमी ऋचासे गन्ध निवेदन करे । दसवींचे फूल चढ़ाये और ग्यारहवीं ऋचासे धूप दे । बारहवींसे दीप और तेरहवीं ऋचासे नैवेद्य, फल, दक्षिणा अदि अन्य पूजन - सामग्री निवेदित करे । चौदहवीं ऋचासे स्तुति करके पंद्रहवींसे प्रदक्षिणा करे । अन्तमें सोलहवीं ऋचासे विसर्जन करे । पूजनके बाद शेष कर्म पहले बताये अनुसार ही पूर्ण करे । भगवानके लिये स्नान, वस्त्र, नैवेद्य और आचमनीय आदि निवेदन करे इस प्रकार देवदेव परमात्माका पूजन करनेवाला पुरुष छः महीनेमें सिद्धि प्राप्त कर लेता है । इसी क्रमसे यदि एक वर्षतक पूजन करे तो वह भक्त सायुज्य मोक्षका अधिकारी हो जाता है ॥७ - १४ १/२॥
विद्वान् पुरुष अग्निमें आहुतिके द्वारा, जलमें पुष्पके द्वारा, हदयमें ध्यानद्वारा और सूर्यमण्डलमें जपके द्वारा भगवान् विष्णुका पूजन करते हैं । वे भक्तजन सूर्यमण्डलमें दिव्य, अनामय, देवदेव शङ्ख - चक्र - गदाधारी भगवान् विष्णुका ध्यान करते हुए उनकी उपासना करते हैं । जो केयूर, मकराकृतिकुण्डल, किरीट, हार आदि आभूषणोंसे भूषित हो, हाथमें शङ्ख - चक्र धारण किये कमलासनपर विराजमान हैं तथा जिनके शरीरकी कान्ति सुवर्णके समान देदीप्यमान है, सूर्यमण्डलके मध्यमें विराजमान उन भगवान् नारायणका सदा ध्यान करे । जो प्रतिदिन बुद्धिमें भगवान् विष्णुकी भावना करके केवल इस ' ध्येयः सदा.......' इत्यादि सूक्तका पाठमात्र ही कर लेता है, वह भगवान् विष्णुको संतुष्ट करनेवाला पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो विष्णुधामको पहुँच जाता है । बिना मूल्यके ही मिलनेवाले पूजनोपचार - पत्र, पुष्प, फल और जलके सदा रहते हुए तथा एक मात्र भक्तिसे ही सुलभ होनेवाले भगवान् पुराण - पुरुषके होते हुए मनुष्यद्वारा मुक्तिके लिये प्रयत्न क्यों नहीं किया जाता ? अर्थात् उक्त सुलभ उपचारोंसे भगवानका पूजन करके लोग मोक्ष पानेके लिये यत्न क्यों नहीं करते ? ॥१५ - १९॥
नृपवर ! इस प्रकार यह परमपुरुष भगवान् विष्णुकी पूजा - विधि आज मैंने तुम्हें बतायी है । यदि तुम्हें वैष्णवपद प्राप्त करनेकी इच्छा हो तो इस विधिके द्वारा सदा भगवान विष्णुकी पूजा करो ॥२०॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' भगवान् विष्णुकी पूजा - विधि ' नामक बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥६२॥