संस्कृत सूची|संस्कृत साहित्य|पुस्तकं|आर्या-सप्तशती| ध-कार-व्रज्या आर्या-सप्तशती ग्रन्थारम्भ-व्रज्या अ-कार-व्रज्या आ-कार-व्रज्या इ-कार-व्रज्या ई-कार-व्रज्या उ-कार-व्रज्या ऊ-कार-व्रज्या ऋ-कार-व्रज्या ए-कार-व्रज्या क-कार-व्रज्या ख-कार-व्रज्या ग-कार-व्रज्या घ-कार-व्रज्या च-कार-व्रज्या ज-कार-व्रज्या झ-कार-व्रज्या ढ-कार-व्रज्या त-कार-व्रज्या द-कार-व्रज्या ध-कार-व्रज्या न-कार-व्रज्या प-कार-व्रज्या ब-कार-व्रज्या भ-कार-व्रज्या म-कार-व्रज्या य-कार-व्रज्या र-कार-व्रज्या ल-कार-व्रज्या व-कार-व्रज्या श-कार-व्रज्या ष-कार-व्रज्या स-कार-व्रज्या ह-कार-व्रज्या क्ष-कार-व्रज्या आर्या सप्तशती - ध-कार-व्रज्या आर्या सप्तशती हा आचार्य गोवर्धनाचार्य यांनी रचलेला पवित्र ग्रंथ आहे. Tags : arya saptashatigovardhanacharyaआर्या सप्तशतीगोवर्धनाचार्यसंस्कृत ध-कार-व्रज्या Translation - भाषांतर धूमैर् अश्रु निपातय दह शिखया दहन-मलिनयाङ्गारैः ।जागरयिष्यति दुर्गत-गृहिणी त्वां तद् अपि शिशिर-निशि ॥३०४॥धैर्यं निधेहि गच्छतु रजनी सो ऽप्य् अस्तु सुमुखि सोत्कण्ठः ।प्रविश हृदि तस्य दूरं क्षण-धृत-मुक्ता स्मरेषुर् इव ॥३०५॥धवल-नख-लक्ष्म दुर्बलम् अकलैत-नेपथ्यम् अलक-पिहिताक्ष्याः ।द्रक्ष्यामि मद्-अवलोक-द्वि-गुणाश्रु वपुः पुर-द्वारि ॥३०६॥धर्मारम्भेऽप्य् असतां पर-हिंसैव प्रयोजिका भवति ।काकानाम् अभिषेकेऽकारणतां वृष्टिर् अनुभवति ॥३०७॥इति विभाव्याख्या-समेता ध-कार-व्रज्या ॥ N/A References : N/A Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP