देव ! दूसरो कौन दीनको दयालु ।
सीलनिधान सुजान-सिरोमनि,
सरनागत-प्रिय प्रनत-पालु ॥१॥
को समरथ सर्बग्य सकल प्रभु,
सिव-सनेह मानस-मरालु ।
को साहिब किये मीत प्रीतिबस,
खग निसिचर कपि भील-भालु ॥२॥
नाथ, हाथ माया-प्रपंच सब,
जीव-दोष-गुन-करम-कालु ।
तुलसीदास भलो पोच रावरो,
नेकु निरखि कीजिये निहालु ॥३॥