रामचन्द्र रघुनायक तुमसों हौं बिनती केहि भाँति करौं ।
अघ अनेक अवलोकि आपने, अनघ नाम अनुमानि डरौं ।
पर-दुख दुखी सुखी पर सुखते, संत-सील नहिं ह्रदय धरौं ।
देखि आनकी बिपति परम सुख सुनि संपति बिनु आगि जरौं ।
भगति बिराग ग्यान साधन कहि बहु बिधि डहँकत लोग फिरौं ।
सिव सरबस सुखधाम नाम तव, बेंचि नरकप्रद उदर भरौं ॥
जानत हौं निज पाप जलधि जिय, जल-सीकर सम सुनत लरौं ।
रज-सम पर अवगुन सुमेरु करि, गुन गिरि-सम रजतें निदरौं ॥
नाना बेष बनाय दिवस निसि परबित जेहि तेहि जुगुति हरौं ।
एकौ पल न कबहुँ अलोल चित, हित दै पद सरोज सुमिरौं ॥
जो आचरन बिचारहु मेरो कलप कोटि लगि औटि मरौं ।
तुलसीदास प्रभु कृपा बिलोकनि, गोपद ज्यों भवसिंधु तरौं ॥