ऐसे राम दीन-हितकारी ।
अति कोमल करुनानिधान बिनु कारन पर उपकारी ॥१॥
साधन हीन दीन निज अघ-बस सिला भई मुनि नारी ।
गृहतें गवनि परसि पद पावन, घोर सापते तारी ॥२॥
हिंसारत निषाद तामस बपु, पसुसमान बनचारी ।
भेंट्यो ह्रदय लगाइ प्रेमबस, नहिं कुल जाति बिचारी ॥३॥
जद्यपि द्रोह कियो सुरपति सुत, कहि न जाय अति भारी ॥।
सकल लोक अवलोकि सोकहत, सरन गये भय टारी ॥४॥
बिहँग जोनि आमिष अहार पर, गीध कौन ब्रतधारी ।
जनक समान क्रिया ताकी निज कर सब भाँति सँवारी ॥५॥
अधम जाति सबरी जोषित जड़, लोक बेद तें न्यारी ।
जानि प्रीत, दै दरस कृपानिधि, सोउ रघुनाथ उघारी ॥६॥
कपि सुग्रीव बंधु-भय-ब्याकुल, आयो सरन पुकारी ।
सहि न सके दारुन दुख जनके, हत्यो बालि, सहि गारी ॥७॥
रिपुको अनुज बिभीषन निसिचर, कौन भजन अधिकारी ।
सरन गये आगे ह्वै लीन्हों भेंट्यो भुजा पसारी ॥८॥
असुभ होइ जिनके सुमिरे तें बानर रीछ बिकारी ।
बेद बिदित पावन इये ते सब, महिमा नाथ तुम्हारी ॥९॥
कहँ लगि कहौं दीन अगनित जिन्हकी तुम बिपति निवारी ।
कलि-मल-ग्रसित दस तुलसीपर, काहे कृपा बिसारी ? ॥१०॥