यारो, सुनो ये दधिके लुटैयाका बालपन,
औ मधुपुरी नगरके बसैयाका बालपन ।
मोहन सरूप नृत्य-करैयाका बालपन,
बन-बनके ग्वाल गौवें चरैयाका बालपन ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१॥
बाले थे बिर्जराज, जो दुनियाँमें आ गये,
छीलाके लाख रंग तमासे दिखा गये ।
इस बालपनके रूपमें कितनोंको भा गये,
एक यह भी लहर थी जो जहाँको जता गये ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥२॥
परदा न बालपनका वो करते अगर जरा,
क्या ताब थी जो कोई नजर भरके देखता ।
झाड़ औ पहाड़ देते सभी अपना सर झुका,
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥३॥
अब घुटनियोंका उनके मैं चलना बयाँ करूँ ?
या मीठी बातें मुँहसे निकलना बयाँ करूँ ?
या बालकोंमें इस तरह पलना बयाँ करूँ ?
या गोदियोमें उनका मचलना बयाँ करूँ ?
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥४॥
पाटी पकड़के चलने लगे जब मदनगोपाल,
धरती तमाम हो गयी एक आनमें निहाल ।
बासुकि चरन छुअनको चले छोड़के पताल,
आकासपर भी धूम मची देख उनकी चाल ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥५॥
करने लगे ये धूम जो गिरधारी नंदलाल,
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल-बाल ।
माखन दही चुराने लगे सबके देखभाल,
दी अपनी दूध चोरीकी घर-घरमें धूम डाल ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥६॥
कोठेमें होवे फिर तो उसीको ढँढोरना,
मटका हो तो उसीमें भी जा मुखको बोरना ।
ऊँचा हो तो भी कंधेपै चढ़के न छोड़ना,
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरलीसे फोड़ना ।
ऐसा था, बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥७॥
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ,
औ उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले वाँ ।
मैं तो तेरे दहीकी उड़ाता था मक्खियाँ,
खाता नही मैं उसको निकाले था चीटियाँ ।
ऐसा था बासुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥८॥
गुस्सेमें कोई हाथ पकड़ती जो आनकर,
तो उसको वह स्वरूप दिखाते थे मुर्लीधर ।
जो आपी लाके धरती वो माखन कटोरीभर,
गुस्सा वो उसका आनमें जाता वहाँ उतर ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥९॥
उनको तो देख ग्वालिनें जो जान पाती थीं,
घरमें इसी बहानेसे उनको बुलाती थीं ।
जाहिरमें उनके हाथसे वे गुल मचाती थीं,
परदे सबी वो कृष्णकी बलिहारी जाती थी ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या-क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१०॥
कहती थी दिलमें, दूध जो अब हम छिपायेंगे,
श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुँह दिखायँगे ।
और जो हमारे घरमें ये माखन न पायँगे,
तो उनको क्या गरज है वो काहेको आयँगे ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥११॥
सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर,
अब तो तुम्हारा कान्हा हुआ है बड़ा शरीर ।
देता है हमको गालियाँ, औ फाड़ता है चीर,
छोड़े दही न दूध, न माखन मही न खीर ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१२॥
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिंतियाँ,
औ कान्हको डरातीं उठा मनकी साँटियाँ ।
तब कान्हजी जसोदासे करते यही बयाँ,
तुम सच न मानो मैया ये सारी हैं झूठियाँ ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१३॥
माता, कभी ये मुझको पकड़कर ले जाती है,
औ गाने अपने साथ मुझे भी गवाती है ।
सब नाचती है आप मुझे भी नचाती है,
आपी तुम्हारे पास ये फरियादी आती है ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१४॥
मैया, कभी ये मेरी छगुलिया छिपाती है,
जाता हूँ राहमें तो मुझे छेड़े जाती है ।
आपी मुझे रुठाती है आपी मनाती है,
मारो इन्हे ये मुझको बहुत-सा सताती है ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१५॥
इक रोज मुँहमें कान्हने माखन छिपा लिया,
पूछा जसोदाने तो वहाँ मुँह बना दिया ।
मुँह खोल तीन लोकका आलम दिखा दिया,
इक आनमें दिखा दिया और फिर भुला दिया ॥
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१६॥
ये कान्हजी तो नंद-जसोदाके घरके माह,
मोहन नवलकिशोरकी थी सबके दिलमें चाह ।
उनको जो देखता था, सो करता था वाह वाह,
ऐसा तो बालपन न किसीका हुआ है आह ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१७॥
राधारमनके यारो अजब जाये गौर थे,
लड़कोंमें वो कहाँ हैं जो कुछ उनमें तौर थे ।
आपी वो प्रभु नाथ थे आपी वो दौर थे,
उनको तो बालपनहीमें तेवर कुछ और थे ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१८॥
होता है यों तो बालपन हर तिफ्लका भला,
पर उनके बालपनमें तो कुच औरी भेद था ।
इस भेदीकी भला जो किसीको खबर है क्या,
क्या जाने अपनी खेलने आये थे क्या कला ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥१९॥
सब मिलके यारो, कृष्णमुरारीकी बोलो जै,
गोबिंद-कुंज-छैल-बिहारीकी बोलो जै ।
दधिचोर गोपीनाथ, बिहारीकी बोलो जै,
तुम भी 'नजीर' कृष्णमुरारीकी बोलो जै ।
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
ऐसा था बाँसुरीके बजैयाका बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण-कन्हैयाका बालपन ॥२०॥