सब होस बदनका दूर हुआ, जब गतपर आ मिरदंग बजी ।
तन भंग हुआ, दिल दंग हुआ, सब गान गई बेआन सजी ॥
यह नाचा कौन 'नजीर' अब याँ, और किसने देखा नाच अजी !
जब बूँद मिली जा दरियामें, इस तानका आखिर निकला जी ।
है राग उन्हींके रंग-भरे, औ भाव उन्हींके साँचे है ॥
जो बे-गत बे-सुरताल हुए, बिन ताल पखावज नाचे है ॥