जब हाथको धोया हाथोंसे, जब हाथ लगे थिरकानेको ।
और पाँवको खींचा पाँवोंसे, और पाँव लगे गत पानेको ॥
जब आँख उठाई हस्तीसे, जब नयन लगे मटकानेको ।
सब काछ कछे, सब नाच नचे, उस रसिया छैल रिझानेको ॥
हैं राग उन्हींके रंग-भरे, औ भाव उन्हींके साँचे हैं ।
जो बे-गत बे-सुरताल हुए, बिन ताल पखावज नाचे है ॥