भजन - जब मुरलीधरने मुरलीको अपने...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जब मुरलीधरने मुरलीको अपने अधर धरी,

क्या-क्या परेम-प्रीत-भरी उसमें धुन भरी ।

लै उसमें 'राधे-राधे' की हरदम भरी खरी,

लहराई धुन जो उसकी इधर औ उधर जरी ।

सब सुननेवाले कह उठे जै जै हरी हरी,

ऐसी बजाई कृष्ण-कन्हैयाने बाँसुरी ॥

ग्वालोंमें नंदलाल बजाते वो जिस घड़ी,

गौएँ धुन उसकी सुननेको रह जातीं सब खड़ी ।

गलियोंमें जब बजाते तो वह उसकी धुन बड़ी,

ले-लेके अपनी लहर जहाँ कानमें पड़ी ।

सब सुननेवाले कह उठे जै जै हरी हरी,

ऐसी बजाई कृष्ण-कन्हैयाने बाँसुरी ॥

मोहनकी बाँसुरीके मैं क्या-क्या कहूँ जतन,

ले उसकी मनकी मोहिनी धुन उसकी चितहरन ।

उस बाँसुरीका आनके जिस जा हुआ वजन,

क्या जल, पवन, 'नजीर' पखेरू व क्या हरन-

सब सुननेवाले कह उथे जै जै हरी हरी

ऐसी बजाई कृष्ण-कन्हैयाने बाँसुरी ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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