प्रीतम रूप दिखाय लुभावै । यातें जियरा अति अकुलावै ॥
जो कीजत सो तौ भल कीजत, अब काहे तरसावै ।
सीखी कहाँ निठुरता एती, दीपक पीर न लावै ॥
गिरि गिरि मरत पतंग जोतिमें, ऐसेहु खेल सुहावै ।
सुन लीजै बेदरद मोहना, जिन अब मोहि सतावै ॥
हमरी हाय बुरी या जगमें, जिन बिरहाग जरावै ।
जुगलप्रिया मिलिबो अनमिलिबो. एकहि भाँति लखावै ॥