मेरे गति एक आप, दूजो कोऊ और ना ।
स्त्रीको तन मलीन, कर्म अधिकार ना ॥
चपल बुद्धि बरनी कबि होत हिये ज्ञान ना ।
मंद-भाग्य मंदकर्म बनत नाहिं साधना ॥
बिद्या गुन हीन दीन, नैक भक्ति भाव न ।
नेम ध्यान धर्म कछू होत ना उपासना ॥
गेह फँसी ग्रसी रोग, एकहू उपाय ना ।
करूँ कहाँ जाऊँ कहाँ काहू पै बसाय ना ॥
इतने पै द्रोह करत, तातभ्रात साजना ।
जुगलप्रिया तऊँ तुम्हें प्यारे प्रिय लाज ना ॥