ज्ञान शुभ कर्मको सुथल मिथिला धाम ॥
जनक जोगींद्र राजेंद्र राजत बिदेह ब्रह्म,
सुख अनुभवत इसि दिवस आठौ जाम ।
भोग रोग मानत हैं, सहज ही बिराग भाग,
शान्ति रूप कर्म करैं पुरे निहकाम ॥
श्रीमती सुनैना भली सुकृत बेलि फूली-फली,
जनमि श्रीसीय पाये लौने बर राम ।
जुगलप्रिया सरिता बन बाग तरु तड़ाग राग,
नारी नर सोहै सब अति ललाम ॥