चरन चलौ श्रीवृंदावन मग, जहँ सुनि अलि पिक कीर ॥
कर तुम करौ करम कृष्णार्पण अहंकार तजि धीर ।
मस्तक नवियौ हरिभक्तनको छाँड़ि कपटको चीर ॥
स्त्रवन सदा सुनियौ हरि-जस-रस, कथा भागवत हीर ।
नैना तरसि तरसि जल ढरियौ, पिय मग जाय अधीर ॥
नासा तबलौं स्वाँसा भँरियौ, सुरता रखि पिय तीर ।
रसना चखियो महा प्रसादै, तजि बिषया-बिष नीर ॥
सुधि बुधि बढ़े प्रेम चरनन, ज्यों तृष्णा बढ़े शरीर ।
चित्त चितेरे, लिखियो पियकी, मूरति ह्रदय कुटीर ॥
इंद्रिय मन तन भजौ श्यामकों, बढ़े बिरहकी पीर ।
जुगलप्रिया आसा जिय धरियो, मिलिहैं श्रीबलबीर ॥