उंछवृत्ति n. एक ब्राह्मण । दारिध्र के कारण के इसे पेट भर खाने के लिये भी नहीं मिलता था । एक दिन जब यह भिक्षा के लिये घूम रहा था, तब इसे एक सेर सत्त मिला । उसमें सें अग्नि तथा ब्राह्मण को दे कर वाकी अपने पुत्रों को समान भाग में बॉंट दिया । यह स्वयं खाना शुरु करे इतने में प्रत्यक्ष यमधर्म ब्राह्मणरुप में उसके पास आया तथा खाने के लिये मांगने लगा । ब्राह्मण ने अपने हिस्से का सत्त इसे दिया परंतु उसे संतोष न हुआ । तब इसने अपने पुत्रादिकों के हिस्से का सत्त भी इसे दिया । यह देख कर धर्म प्रसन्न हुआ तथा वह इस ब्राह्मण को सहकुटुंब तथा सदेह स्वर्ग में ले गया । आगे चल कर इस पुण्यात्मा के सत्त के जो कण भूमिपर गिरे थे उसमें एक नेवला आ कर लोट लगाने लगा । शरीर का जो भाग उस सत्त को लगा, वह एकदम सुवर्णमय हो गया । आगे चल कर वह नेवला धर्म के यज्ञ में अपने शरीर का दूसरा भग भी सुवर्णमय हो, इस इच्छा से गया परंतु उसकी इच्छा पूरी नही हुई
[जै.अ.६६] । मोक्षधर्म कथन के पश्चात्, गृहस्थाश्रमी मानव भीं उंच्छवृत्ति का पालन करने से मोक्ष प्राप्त कर सकता है, यह पुरातन कथा भीष्म ने युधिष्ठिर को कथन की
[म.शां३४११-३५३] । कुरुक्षेत्रस्थ उंच्छवृत्तिधारी सक्तुप्रस्थ ब्राह्मण के यहॉं त्यक्त पिष्ठ में वदन को घोलने से नकुल का अर्धीग सुवर्णमय हुआ, किन्तु बाकी आधा शरीर धर्मराज के यज्ञ में उर्वरित अन्न में घोलने से भी सुवर्णमय न हो सका । इस प्रकार उंच्छवृत्ति की प्रशंसा उल्लेखित है
[म.आश्व. ९२-९३] ।उंच्छवृत्ति के माने, कपोत के जैसे विनायास मिले हुए दाने चून कर जीवन यापन करना ।
[म. आश्व.९३.२.५] . इसे सत्य ऐसा नामान्तर था । इस की पत्नी का नाम पुष्करमालिनी
[म.शां २६४.६-७] ।