Shri Tatvnyayvibhakar - Page 53

Shri Tatvnyayvibhakar - Page 53


(०)
तरवयाययिभावरे
रिकौदारिकमिश्रवैग्रियवन्रियमिश्राsऽहारकाSार-
कमिश्रकार्मणशरीरजन्यव्यापारास्मसेति पश्चदश
योगा ।।
रक्तद्विष्टात्मसम्वद्वाना कार्मणस्कन्धाना परि
णामयिशेपेण स्वस्वयोग्यकार्य ्यसस्थापन प्रकृति-
बन्ध । प्रविभक्ताना कर्मस्कन्धाना विशिष्टमर्यादया
निनिलनियमन स्थिनियन्ध' । परिपराकूमुपयाता
না निशिष्टकर्मस्कन्धाना शुभाशुभविपाकानुभयन-
योग्यारस्था रसयन्धर । प्रृत्यादिव्रयनिरपेक्ष दलि
कसरगरामाघान्येन कर्मपुदलाना ग्रहण प्रदेशवन्ध' ।
বन्धाते चत्वार एकवि राध्यवसायविशेपेण
जायन्ते मक्रमोद्वर्तनादिकरणनिशेषा्च ॥
करणविशपाय यन्धसनमोद्वर्नापनर्तनोदीर-
णोपशमनानि वक्तिनिकाचनामेदादष्टनिधा ॥
तत्र यद्वात्मनो वार्यपरिणामविशेप करणम् ।
थीर्षश्वाग्र योगकपायरूप नियक्षितम् ॥
कर्मणामात्ममदेश सहान्योन्यानुरामनप्रयोज
कर्मर्यपरिणामो वन्पनरुरणम् । अत्र योगात्मकघी
येण प्रकृतिमदेशयो कपायैध स्थित्पनुभागयोर्थन्धो
जायते ॥

Unlike other pages, this page used variery of software techniques like Optical Character Recognition (OCR), Machine Learning, and Artificial Intelligence to transliterate text from the scanned image. While the software algorithms are being prefected, the transliteation may be be accurate.Prior to any use, we recommend comapring text with image on this page. Please leave us a comment about any corrections to transliterated text above.
Last Updated : June 03, 2021

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP