युवनाश्व n. (सू, इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो युवनाथ प्रथम नाम से सुविख्यात है । भागवतके अनुसार यह चंद्रराजा का, विष्णु के अनुसार आर्द्र का, मत्स्य के अनुसार इन्दु का, एवं वायु के अनुसार आंध्र राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम श्रावस्त था ।
युवनाश्व II. n. (स. इ.) इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न एक सुविख्यात नरेश, जो युवनाश्व द्वितीय नाम से सुविख्यात हैं । महाभारत में इसे सुद्युम्न राजा का पुत्र कहा गया है, जिस कारण इसे सौद्युम्नि नामान्तर भी प्राप्त था । विष्णु एवं वायु के अनुसार यह प्रसेनजित राजा का, मत्स्य के अनुसार रणाश्व का एवं भागवत के अनुसार सेनजित का पुत्र था । इसकी सौ पत्नियाँ थी, जिनमें से गौरी इसकी पटरानी थी । बहुत वर्षों तक इसे पुत्र न था । इसलिए पुत्रप्राप्ति के लिए भृगु ऋषि को अध्वर्यु बना कर इसने एक यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ समारोह की रात्रि में अत्यधिक प्यासा होने के कारण, इसने भृगुऋषि के द्वारा इसकी पत्नियाँ के लिए सिद्ध किया गया जल गलती से प्राशन किया । इसी जल के कारण, इसमें गर्भस्थापना हो कर इसकी बाय़ी कुक्षी से ‘मांधातृ’ नामक सुविख्यात पुत्र का जन्म हुआ
[म. व. १९३.३] ;
[भा. ९.६,२५-३२] ; मांधातृ देखिये । इसकी गौरी नामक पत्नी पौरवराजा मतिनार की कन्या थी । वायु में इसके द्वारा गौरी को शाप दिये जाने की एक कथा प्राप्त है, जिस कारण वह बाहुदा नामक नदी बन गयी
[वायु. ८८.६६] ;
[ब्रह्मांड. ३.६३.६७] ;
[व्रह्म. ७.९१] ;
[ह. वं १.१२.५] । इसकी एक कन्या का नाम कावेरी था, जो गंगा नदी का ही मानवी रूप थी
[ह. वं. १.२७.९] । अपनी इस कन्या को इसने नदी बनने का शाप दिया, जो आज ही नर्मदा नदी की सहाय्यक नदी के नातें विद्यमान है
[मत्स्य., १८९.२-६] । अपने पूर्ववर्ती रैवत नामक राजा से इसे एक दिव्य खङग की प्राप्ति हुयी थी. जो इसने अपने वंशज रघु राजा को प्रदान किया था
[म. शां. १६०.७६] यह एक सुविख्यात दानी राजा था, जिसने अपनी सारी पात्नियाँ एवं राज्य बाह्मणों को दान में दिया था
[म. शां. २१६.२५] ।
युवनाश्व III. n. (सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो युवनाश्व तृतीय नाम से सुविख्यात था । यह मांधातृपुत्र अंबरीप रजा का पुत्र था । मांधातृ एवं इसके वंशज क्षत्रिय ब्राह्मण कहलाते थे, जिस कारण इसे भी यही उपाधि प्राप्त थी । यह एवं इसका पुत्र हरित, अंगिरस ब्राह्मण कुल में प्रविष्ट हुयें थे । एक वैदिक सूक्तद्रष्टा के नाते से इसका उल्लेख प्राप्त है
[ऋ. १०.१३४] । इसे अंगिरस कुल का एक मंत्रकार भी कहा गया है । इसके पितामह मांधातृ ने एक प्रवरके नाते इसका स्वीकार किया था
[भा. ९.७.१] ।
युवनाश्व IV. n. ( स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो भागवत के अनुसार पृथु राजा का पुत्र था ।
युवनाश्व V. n. शूलिन् नामक शिवावतार का एक शिष्य ।