नासत्यांतकवह्रिधातृशशभृद्रुद्रादितीज्योरगा
ऋक्षेशाः पितरो भगोर्यमरवित्वष्टाशुगाश्च क्रमात् ।
शक्राग्नी खलु मित्र इंद्रनिऋतिक्षीराणि विश्वे विधि
र्गोविंदो वसु तोयपाजचरणाऽहिर्बुद्दयपूषाभिधाः ॥९४॥
वरील श्लोकांत अश्विनीपासून रेवतीपर्यंत सत्तावीस नक्षत्रांचे स्वामी अनुक्रमें सांगितलेले आहेत , ते येणेंप्रमाणें : ---
नक्षत्रें - स्वामी
अश्विनी - नासत्य
भरणी - यम
कृत्तिका - अग्नि
रोहिणी - धाता
मृग - चंद्र
आर्द्रा - रुद्र
पुनर्वसु - अदिति
पुष्य - गुरु
आश्लेषा - सर्प
मघा - पितर
पूर्वा - भग
उत्तरा - अर्यमा
हस्त - रवि
चित्रा - त्वष्टा
स्वाती - वायु
विशाखा - इंद्राग्नी
अनुराधा - मित्र
ज्येष्ठा - इंद्र
मूळ - राक्षस
पू० षाढा - जल
उ० षाढा - विश्र्वेदेव
अभिजित् - विधि
श्रवण - विष्णु
धनिष्ठा - वसु
शततारका - वरुण
पू० भा० - अजचरण
उ० भा० - अहिर्बुघ्य
रेवती - पूषा .
एकाद्या ठिकाणीं नक्षत्रांच्या नांवांचा उपयोग न करितां त्यांच्या स्थानीं त्यांच्या स्वामींच्या नांवांनींही नक्षत्रें व्यक्त करण्याचा परिपाठ आहे . जसें , आश्लेषाबद्दल - सर्प , रेवतीबद्दल पूषा इत्यादि .
नक्षत्रांच्या तारा .
वह्रित्रिऋत्विषुगुणेंदुकृताग्निभूत -
बाणाश्विनेत्रशरभूकुयुगाब्धिरामाः ।
रुद्राब्धिरामगुणवेदशतद्वियुग्म -
दंता बुधैर्निगदिताः क्रमशो भताराः ॥९५॥
अश्विनी , भरणी , आदिकरुन अभिजित् सह जीं अठठावीस नक्षत्रें आहेत , त्यांच्या तारांच्या संख्या क्रमानें खालीं दिल्या आहेत . जसें , - अश्विनीच्या तीन तारा , भरणीच्या ३ , कृत्तिकाच्या ६ , या क्रमानें सर्व नक्षत्रांच्या तारा जाणाव्या .
३।३।६।५।३।१।४।३।५।५।२।२।५।१।१।४।४।३।११।४।३।३।३।४।१००।२।२।३२ .
नक्षत्रांच्या तारांचें फल .
नक्षत्रजमुद्वाहे फलमब्दैस्तारकामितैः सदसत् ।
दिवसैर्ज्वरस्य नाशो व्याधेरन्यस्य वा वाच्यः ॥९६॥
विवाहादि कार्यामध्यें जें नक्षत्र घेतलें असेल , त्या नक्षत्रासंबंधानें जें कांहीं बरेंवाईट फल सांगितलें असेल तें फल त्या नक्षत्राच्या जितक्या तारा असतील तितक्या वर्षानीं प्राप्त होतें . तसेंच एकाद्या नक्षत्रावर ज्वरादिरोग उत्पन्न झात्यास त्या रोगाचा नाश , नक्षत्राच्या जितक्या तारा असतील , तितक्या दिवसांनीं होईल असें जाणावें .
नक्षत्रांच्या संज्ञा , स्वामी , स्वरुप इ० कोष्टक .
अ . नं . |
नक्षत्रांची नांवे |
शुभाशुभ संज्ञा |
स्वामींची नावे |
मुख संज्ञा |
तार्यांची संज्ञा |
१ |
अश्विनी |
शुभ |
अश्वि . कु . |
तिर्थ॓ङमु |
३ |
२ |
भरणी |
नाश्क |
यम |
अधोमु० |
३ |
३ |
कृत्तिका |
कार्यनाश |
अग्नि |
अधोमु० |
६ |
४ |
रोहुणी |
सिद्धी |
ब्रह्मा |
ऊर्ध्वमु० |
५ |
५ |
मृगशीर्ष |
शुभ |
चंद्र |
तिर्थ॓ङमु |
३ |
६ |
आर्द्रा |
शुभ |
शिव |
ऊर्ध्वमु० |
१ |
७ |
पुनर्वसु |
मध्यम |
देवमाता |
तिर्थ॓ङमु |
४ |
८ |
पुष्य |
शुभ |
गुरू |
ऊर्ध्वमु० |
३ |
९ |
आश्लेषा |
शोक |
सर्प |
अधोमु० |
५ |
१० |
मघा |
नाश्क |
पितर |
अधोमु० |
५ |
११ |
पूर्वा |
मृत्युप्रद |
भग |
अधोमु० |
२ |
१२ |
उत्तरा |
विद्या |
अर्यमा |
ऊर्ध्वमु० |
२ |
१३ |
हस्त |
लक्ष्मी |
रवि |
तिर्थ॓ङमु |
५ |
१४ |
चित्रा |
शुभदा |
त्वष्टा |
तिर्थ॓ङमु |
१ |
१५ |
स्वाती |
अशुभ |
वायु |
तिर्थ॓ङमु |
१ |
१६ |
विशाखा |
अशुभ |
इंद्राग्नि |
अधोमु० |
४ |
१७ |
अनुराधा |
सिद्धी |
मित्र |
तिर्थ॓ङमु |
४ |
१८ |
ज्येष्ठा |
क्षय |
इंद्र |
तिर्थ॓ङमु |
३ |
१९ |
मूळ |
नाशप्रद |
राक्षस |
अधोमु० |
११ |
२० |
पू . षाढा |
अर्थना० |
उदक |
अधोमु० |
४ |
२१ |
उ . षाढा |
बिद्धीदा० |
विश्वेदेव |
ऊर्ध्वमु० |
३ |
२२ |
अभिजित् |
बिद्धीदा० |
ब्रह्मा |
सर्वतो . |
३ |
२३ |
श्रवण |
सुखप्रद |
विष्णु |
ऊर्ध्वमु० |
३ |
२४ |
घनिष्ठा |
शुभदा० |
वसु |
ऊर्ध्वमु० |
४ |
२५ |
शततारका |
कल्याणी |
वरुण |
ऊर्ध्वमु० |
१०० |
२६ |
पू . भाद्रपदा |
मृत्युदा० |
अजैकपा . |
अधोमु० |
२ |
२७ |
उ . भाद्रपदा |
लक्ष्मी |
अहिर्वु . |
ऊर्ध्वमु० |
२ |
२८ |
रेवती |
कामदा० |
कामदा० |
तिर्थ॓ङमु |
३२ |
अनु क्रम |
रूपसंज्ञा |
लो्चन संज्ञा |
आकृति |
१ |
लघु , क्षिप्र |
मंदलो . |
अश्वमुख |
२ |
उग्र , क्रूर |
मध्यलो . |
योनिरूप |
३ |
मिश्रसाधारण |
सुलोचन |
वस्तरारूप |
४ |
धृव , स्थिर |
अंधलो . |
रथाकृति |
५ |
मृदु , मैत्र |
मंदलो . |
हरिणाकृति |
६ |
तीक्ष्ण दारूण |
मध्यलो . |
मणिसम |
७ |
चर , चल |
सुलोचन |
गृहाकार |
८ |
लघु , क्षिप्र |
अंधलो |
शरासम |
९ |
तीक्ष्ण दारूण |
मंदलो . |
चक्राकार |
१० |
उग्र , क्रूर |
मध्यलो . |
शालासम |
११ |
उग्र , क्रूर |
सुलोचन |
शय्यासम |
१२ |
धृव , स्थिर |
अंधलो |
पर्यंकासम |
१३ |
लघु , क्षिप्र |
मंदलो . |
हस्तासम |
१४ |
मृदु , मैत्र |
मध्यलो . |
मौक्तिकसम |
१५ |
चर , चल |
सुलोचन |
पोंवळ्यास० |
१६ |
मिश्रसाधारण |
अंधलो |
तोरणाकार |
१७ |
मृदु , मैत्र |
मंदलो . |
राशीसम |
१८ |
तीक्ष्ण दारूण |
मध्यलो . |
कुंडलाकृ० |
१९ |
तीक्ष्ण दारूण |
सुलोचन |
सिंहपुच्छ |
२० |
उग्र , क्रूर |
अंधलो |
हस्तिदन्त |
२१ |
धृव , स्थिर |
मंदलो . |
शय्यासम |
२२ |
लघु , क्षिप्र |
मध्यलो . |
कोल्हासम |
२३ |
चर , चल |
सुलोचन |
वामनासम |
२४ |
चर , चल |
अंधलो |
ढोलक्यास० |
२५ |
चर , चल |
मंदलो . |
वर्तुलाका० |
२६ |
उग्र , क्रूर |
मध्यलो . |
यमलाका० |
२७ |
धृव , स्थिर |
सुलोचन |
मंचकासम |
२८ |
मृदु , मैत्र |
अंधलो |
मृदंगासम |