संस्कृत सूची|शास्त्रः|ज्योतिष शास्त्रः|बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम्| अध्याय ३८ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् अध्याय १ अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ अध्याय ५ अध्याय ६ अध्याय ७ अध्याय ८ अध्याय ९ अध्याय १० अध्याय ११ अध्याय १२ अध्याय १३ अध्याय १४ अध्याय १५ अध्याय १६ अध्याय १७ अध्याय १८ अध्याय १९ अध्याय २० अध्याय २१ अध्याय २२ अध्याय २३ अध्याय २४ अध्याय २५ अध्याय २६ अध्याय २७ अध्याय २८ अध्याय २९ अध्याय ३० अध्याय ३१ अध्याय ३२ अध्याय ३३ अध्याय ३४ अध्याय ३५ अध्याय ३६ अध्याय ३७ अध्याय ३८ अध्याय ३९ अध्याय ४० अध्याय ४१ अध्याय ४२ अध्याय ४३ अध्याय ४४ अध्याय ४५ अध्याय ४६ अध्याय ४७ अध्याय ४८ अध्याय ४९ अध्याय ५० अध्याय ५१ अध्याय ५२ अध्याय ५३ अध्याय ५४ अध्याय ५५ अध्याय ५६ अध्याय ५७ अध्याय ५८ अध्याय ५९ अध्याय ६० अध्याय ६१ अध्याय ६२ अध्याय ६३ अध्याय ६४ अध्याय ६५ अध्याय ६६ अध्याय ६७ अध्याय ६८ अध्याय ६९ अध्याय ७० अध्याय ७१ अध्याय ७२ अध्याय ७३ अध्याय ७४ अध्याय ७५ अध्याय ७६ अध्याय ७७ अध्याय ७८ अध्याय ७९ अध्याय ८० अध्याय ८१ अध्याय ८२ अध्याय ८३ अध्याय ८४ अध्याय ८५ अध्याय ८६ अध्याय ८७ अध्याय ८८ अध्याय ८९ अध्याय ९० अध्याय ९१ अध्याय ९२ अध्याय ९३ अध्याय ९४ अध्याय ९५ अध्याय ९६ अध्याय ९७ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् - अध्याय ३८ `बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम्` हा ग्रंथ म्हणजे ज्योतिष शास्त्रातील मैलाचा दगड होय. Tags : astrologyjyotishaparasharज्योतिषपाराशरहोराशास्त्र रवियोगाध्यायः Translation - भाषांतर सूर्यात् स्वन्त्योभयस्थैश्च विना चन्द्रं कुजादिभिः ।वेशिवोशिसमाख्यौ च तथोभयचरः क्रमात् ॥१॥समदृक् सत्यवाङ् मर्त्यो दीर्घकायोऽलसस्तथा ।सुखभागल्पवित्तोऽपि वेशियोगसमुद्भवः ॥२॥वोशौ च निपुणो दाता यशोविद्याबलावन्तिः ।तथोभयचरे जातो भूपो वा तत्समः सुखी ॥३॥शुभग्रहभवे योगे फलमेवं विचिन्तयेत् ।पापग्रहसमुत्पन्ने योगे तु फलमन्यथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : July 20, 2011 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP