जयति देव जयति देव, जय दयालु देवा ।
परम गुरु, परम पूज्य, परम देव देवा ॥
सब बिधि तव चरन-सिरन आइ पर्यो दासा ।
दीन, हीन, मति-मलीन, तदपि सरन-आसा ॥
पातक अपार किंतु दयाको भिखारी ।
दुखित जानि राखु सरन पाप-पुंज-हारी ॥
अबलौके सकल दोष क्षमा करहु स्वामी ।
ऐसो करु, जाते पुनि हौ, न कुपथगामी ॥
पात्र हौ कुपात्र हौ, भले अनधिकारी ।
तदपि हौं तुम्हारो, अब लेहु मोहि उबारी ॥
लोग कहत तुम्हरो सब, मनहु कहत सोई ।
करिय सत्य सोइ नाथ भव भ्रम सब खोई ॥
मोरि ओर जनि निहारि, देखिय निज तनही ।
हठ करि मोहि राखिय हरि ! संतत तल पनही ॥
कहौ कहा बार-बार जानहु सब भेवा ।
जयति, जयति, जय दयालु, जय दयालु देवा ॥