इस अखिल विश्वमे भरा एक तू ही तू ।
तुझमें मुझमें 'तू' मै 'तू' तू 'तू' ही तू ॥
नभमें तू, जल थल वायु अनलमें भी तू ।
मेघध्वनि, दामिनि, वृष्टि प्रबलमें भी तू ॥
सागर अथाह सरिता प्रवाहमें भी तू ।
शशि-शीतलता, दिनकर-प्रदाहमें भी तू ॥
बन सघन पुष्प उद्यान मनोहरमें भी तू ।
प्रस्फुटित कुसुम-रस-लीन भ्रमरमें भी तू ॥
है सत्य-असत, विष-अमृत विनय-मदमें तू ॥
शुभ क्षमा-तेज, अति विपद-सुसंपदमें तू ॥
मृदु हास्य सरल, अति तीव्र रुदन-रवमें तू ।
चिरशांति, क्रांति अति भीषण विप्लवमें तू ॥
है प्रकृति-पुरुष, पुरुषोत्तम, मायामें तू ।
अति असह धूप, सुखदायक छायामें तू ॥
नारी-अँतर, शिशु सुखद बदनमें भी तू ।
कामारि, कुसुमरसपाणि मदनमें भी तू ॥
घन अँधकार, उज्ज्वल प्रकाशमें भी तू ।
जड़-मूढ़ प्रकृति, अतिमति-विकासमें भी तू ॥
है साध्वी घरनी कुलटा-गणिकामें भी तू ।
है गुँथा सूत, माला, मणिकामें भी तू ॥
तू पाप-पुण्यमें नरक-स्वर्गमें भी तू ।
पशु-पक्षि, सुरासुर, मनुजवर्गमें भी तू ॥
है मिट्टी-लोह, पषाण-स्वर्णमें भी तू ।
चतुराश्रममें तू, चतुर्वणमें भी तू ॥
है धनी-रंक, ज्ञानी अज्ञानीमें तू ।
है निराभिमानमें अति अभिमानीमें तू ॥
है बाल-वृद्ध नर-नारी, नपुंसकमें तू ।
अति करुणह्रदयमें, निर्दय हिंसकमें तू ॥
है शत्रु-मित्रमें, बाहरमें, घरमें तू ।
है ऊपर, नीचे, मध्य, चराचरमें तू ॥
'हाँ' में, 'ना' में तू, 'तू' में, 'मैं' में 'तू' तू ।
हूँ तू, तू तू, तू तू तू, बस तू ही तू ॥