स्यामने मुरली मधुर बजाई ।
सुनत टेरि, तनु सुधि बिसारि सब गोपबालिका धाई ॥
लहँगा ओढ़ि ओढ़ना पहिरे, कंचुकि भूलि पराई ।
नकबेसर डारे स्त्रवननमहँ अदभुत साज सजाई ॥
धेनु सकल तृन चरन बिसारयो ठाढ़ी स्त्रवन लगाई ।
बछुरनके थन रहे मुखनमहँ सो पय-पान भुलाई ॥
पसु-पंछी जहँ-तहँ रहे ठाढ़े मानो चित्र लिखाई ।
पेड़ पहाड़ प्रेमबस डोले, जड़ चेतनता आई ॥
कालिंदी-प्रबाह नहिं चाल्यो, जलचर सुधि बिसराई ।
ससिकी गति अवरुद्ध, रहे नभ देव बिमानन छाई ॥
धन्य बाँसकी बनी मुरलिया बड़ो पुन्य करि आई ।
सुर-मुनि दुरलभ रुचिर बदन नित राखत स्याम लगाई ॥