बना दो विमलबुद्धि भगवान ।
तर्कजाल सारा ही हर लो, हरो सुमति-अभिमान ।
हरो मोह, माया, ममता, मद, मत्सर मिथ्या मान ॥
कलुष काम-मति कुमति हरो, हे हरे ! हरो अज्ञान ।
दम्भ, दोष, दुर्नीति हरण कर करो सरलता दान ॥
भोग-योग अपवर्ग-स्वर्गकी हरो स्पृहा बलवान ।
चाकर करो चारु चरणोंका नित ही निज जन जान ॥
भर दो ह्रदय भक्ति-श्रद्धासे, करो प्रेमका दान ।
कभी न करो दूर निज पदसे मेटो भवका भान ॥