कर मन हरिको ध्यान, राम गुन गाइये ।
प्रेम-मगन सब देह सुरति बिसराइये ॥
हरि-संकीर्तन करत अश्रुधारा बहै ।
गदगद होवे कंठ-परम सुख सो लहै ॥
पुलकित तनु हरि-प्रेम ह्रदय जो नाचही ।
सुर-मुनि ताकी अनुपम गति नित जाचही ॥
नाम लेत मुख हँसत, कबहुँ कर रुदनही ।
ताको हिय नित करहिं दयामय सदनही ॥