चहौं बस एक यही श्रीराम ।
अबिरल अमल अचल अनपाइनि, प्रेम-भगति निष्काम ॥
चहौं न सुत-परिवार, बंधु-धन, धरनी, जुवति ललाम ।
सुख-वैभव उपभोग जगतके चहौं न सुचि सुरधाम ॥
हरि-गुन सुनत सुनावत कबहूँ, मन न होइ उपराम ।
जीवन-सहचर साधु-संग सुभ, हो संतत अभिराम ॥
नीरदनील नवीन बदन अति सोभामय सुखधाम ।
निरखत रहौं बिस्वमय निसिदिन, छिन न लहौं बिस्राम ॥