माधव ! हौं तुम्हरे संग जैहौ ।
तुम्हरे बिना न एक पल रहिहौ, लोक-लाज कुलकानि नसैहौ ॥
बरजी नहिं रहिहौं काहू की जो बाँधहि तो बंधन खैहौ ।
जड़ तनु तजिहौ, यह मन, प्रिय सँग प्रानहिं अवसि पठैहौं ॥
मिलिहौं जाइ तहाँ प्रियतममें जिमि सागर बिच लहर समैहौ ।
स्याम बदन महँ स्याम रंग रचि, स्यामरूप लहि अति सुख पैहौ ॥