साधन नाम-सम नहिं आन ।
जपत सिव-सनकादि, सारद-नारदादि सुजान ॥
नामके बल मिटत भीषन असुभ भाग्य-बिधान ।
नाम-बल मानव लहत सुख सहज मन-अनुमान ॥
नाम टेरत टरत दारुन बिपति सोक महान ।
आर्त करि नर-नारि, ध्रुव सब रहे सुचि सहिदान ॥
नामके परताप तें जलपर तरे पाषान ।
नाम-बल सागर उलाँघ्यो सहज ही हनुमान ॥
नाम-बल संभव सकल जे कछु असंभव जान ।
धन्य ते नर ! रहत जिनके नाम-रटक बान ॥
पाप-पुंज प्रजारिबे हित प्रबल पावक-खान ।
होत छिनमें छार, निकसत नाम जान-अजान ॥
नाम-सुरसरिमें निरंतर करत जे जन न्हान ।
मिटत तीनों ताप, मुख नहिं होत कबहुँ मलान ॥
नाम-आश्रित जननके मन बसत नित भगवान ।
जरत खरत कुवासना सब तुरत लज्जा मान ॥
नाम जीवन, नाम अमरित, नाम सुखको थान ।
नाम-रत जे नाम-पर, ते पुरुष अति मतिमान ॥
नाम नित आनंद-निरझर, अति पुनीत पुरान ।
मुक्त सत्वर होत जे जन करत सादर पान ॥
नाम जपत सुसिद्ध जोगी बनत समरथवान ।
नामतें उपजत सुभगति बिराग सुभ बलवान ॥
नामके परताप दीखत प्रकृति-दीप बुझान ।
नाम बल ऊगत प्रभामय भानु तत्त्वज्ञान ॥
नामकी महिमा अमित, को सकै करि गुनगान ।
रामतें बड़ नाम, जेहि बल बिकत श्रीभगवान ॥