मन, कछु वा दिनकि सुधि राख ।
जा दिन तेरे तनु-दुकानकी उठि जैहैं सब साख ॥
इंद्रिय सकल न मानहिम अनुमति छोड़ चलै सब साथ ।
सुत, परिवार, नारि नहिं कोऊ पूछैं दुखकी गाथ ॥
वारँट लै जमदूत आइ तोहि पकरि बाँध लै जाय ।
कोउ न बनै सहाय काल तिहि देखत ही रहि जाय ॥
जमके कारागार नरक महँ अतिसय संकट पाय ।
बार-बार करनी सुमिरन करि सिर धुनि-धुनि पछिताय ॥
जो यहि दुखतें उबरो चाहै, तो हरि नाम पुकार ।
राम-नाम ते मिटैम सकल दुख, मिलै परम सुख सार ॥