चेत कर नर, चेत कर, गफलतमें सोना छोड़ दे ।
जाग उठ तत्काल, हरि-चरणोंमें चितको जोड़ दे ॥
मनुज-तन संसारमें मिलता नहीं है बार-बार ।
हो सजग, ले लाभ इसका, नाम प्रभुका मत बिसार ॥
विषय-मदमें चूर होकर क्यों दिवाना हो रहा ।
श्वास ये अनमोल तेरे, क्यों वृथा तू खो रहा ॥
त्याग दे आशा विषयकी, काट ममता-पासको ।
ध्यान कर हरिका सदा, कर सफल हर एक श्वासको ॥
विषय-मदको छोड़ हरि-पद प्रेम-मद तू पान कर ।
हो दिवाना प्रेममें श्रीरामका गुणगान कर ॥
परम प्रियतम ह्रदय-धनके प्रेम-मदमें चूर हो ।
छका रह दिन-रात तू आनंदमें भरपूर हो ॥